मैं एक मजदूर


मैं एक मजदूर



 मैं 
एक मजदूर 
सुबह से शाम तक 
मेहनत करती हूं 
पूरी ईमानदारी से 
ईटो को गढ़ती हूं 
भट्टों पर रखती हूं 
पकती हूं साथ साथ 
पकाती हूं ईटें निर्माण के लिए 

मैं 
एक मजदूर 
अनपढ़
 ढोती हूं ईटो को 
लोगों के सपनों को 
लेती हूं टक्कर 
वक्त के थपेड़ों से 
बांधा है जीवन 
मैंने तो पेड़ों से 
निर्माण के लिए
 मैं
 एक मजदूर 
मजबूर पूछने के लिए 
तुम गए स्कूल 
सबक सीखने के लिए 
सीखा पढ़ा लिखा
 खाई शपथ
 नौकरी के लिए 
लेकिन कर न पाए कुछ 
निर्माण के लिए 
भारत निर्माण के लिए
मोहन द्विवेदी