ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा

“ ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा ”


प्रधानमंत्री जी के संकल्प “ ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा ” से प्रेरित
हो मैंने भी कसम खाई कि अब सभी कार्य नियमों के अनुपालन कर ही करूँगा,
किसी को भी रिश्वत नहीं दूंगा और रिश्वत मांगने वाले के विरुद्ध शिकायत
करूँगा. मैंने अपना यह निर्णय जब अपने नित्रों को बताया तो उन्होंने इसे
सराहा लेकिन रिश्वत मांगने वाले की शिकायत कर मुसीबत मोल लेने के गंभीर
परिणामों से भी आगाह किया . मैंने उन सब को सत्य की राह में न चल
सकने वाले कमजोर और कहीं न कहीं भ्रष्ट मान कर, हिकारत से देखा और
अपने संकल्प से जलने वाला ही माना . घर पहुँच कर धर्मपत्नी को जब यह
बताया तो उन्होंने मुझे हिकारत भरी नज़रों से देखा, और घोषणा कर दी की
आज के बाद बच्चों के और उनके सभी काम वह स्वयं करेंगी , मुझे अपने
संकल्प के साथ चूल्हे में जाने का मार्गदर्शन अलग से दिया.

खैर जो भी और जैसी भी रही हो सभी की प्रतिक्रिया मैं अपने संकल्प पर
कायम रहा. व्यवहारिक दिक्कतों का छुट-पुट सामना करता रहा . सब ठीक -
ठाक ही चल रहा था की एक दिन कार्यालय से स्कूटर से वापस आते हुए मुझे
कुछ सज्जनों ने रास्ता बदलने के लिए आगाह किया कि ट्रैफिक पुलिस की
सघन चेकिंग चल रही है, स्वभाव वश उनको भी मैंने गैरजिम्मेदार माना और
आगे बढता गया. पुलिस वाले ने मुझे हेलमेट पहने देख जाने का इशारा किया,
पर मैं सच्चा नागरिक होने के नाते रुका और उनके अधिकारी के पास जाकर
बोला की यह अनुचित है की आप हेलमेट पहने वालों को बगैर जांच जाने देते
हैं, मैं तो जिम्मेदार नागरिक हूँ इसलिए रुक गया, हेलमेट की आड़ में अपराधी
जुर्म कर भाग रहे होंतो ?
मेरे वाजिब प्रशन पर पुलिस अधिकारी ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से
देखा और एक सिपाही को बुला कर कहा ( आँख मारते हुए ) कि इस
हरीशचन्द्र की जरा ठीक से जांच करलो “हमें क्या करना है सिखा रहा है”.
इसपर सिपाही ने जी सर , अभी इसको सही करता हूँ कहता हुआ मुझे घसीटते
हुए ले जाने लगा. मैंने जब उसके इस दुस्साहस की शिकायत भी अधिकारी

महोदय को की , तो उन्होंने जांच मैं सहयोग करने के लिए मुझे ताकीद किया.
मैं निश्चिंत था क्योंकि सभी सरकारी दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध थे. कागज़
देखने में ज्यादा दिलचस्पी न दिखा कर सिपाही ने स्कूटर का चारों तरफ से
निरिक्षण किया और चालान भरने लगा, कुछ विचार आते हुए रुका और हेलमेट
की जांच करने लगा तब मैंने खीजते हुए बताया की आई एस आई है. मेरे यह
कहते ही उसने मुझसे आई एस आई होने का प्रमाण माँगा क्यों की मानक की
सील मिट गयी थी , पांच साल पुराने हेलमेट की रशीद न होते हुए भी मैंने
उसकी प्रमाणिकता की जांच करवाने की गुहार लगायी तो उस सिपाही के सब्र
का पैमाना ही झलक गया और वह मेरे साथ बदत्तमीजी पर उतर आया. हम
दोनों के बीच कहासुनी होने लगी लोगों का मजमा लग गया और मुझपर हसने
वालों की तादात बड़ने लगी.
सिपाही लगभग घसीटते हुए मुझे अधिकारी महोदय के पास ले गया और
मैं अपनी व्यथा सुना पाता इसके पहले ही मुझ पर सरकारी कार्य में बाधा
डालने की शिकायत सिपाही ने जड़ दी. मैं अपने जिम्मेदार अधिकारी और
नागरिक होने की लाख दुहाई देता रहा पर मेरी किसी ने न सुनी, अधिकारी ने
मजमे में खड़े तमाशबीनों में से दो को बुला कर खाली पेज में हस्ताक्षर करवा
लिए और वायरलेस से संपर्क कर निकट थाने को सूचित कर पुलिस वाहन बुला
लिया. मेरी सारी नैतिकता, ईमानदारी की दुहाई रखी की रखी रह गयी और

मुझे बलपूर्वक बैठा कर पुलिस थाने ले जाया गया.
मैं रास्तेभर अपने निर्दोष होने की दुहाई देता रहा पर किसी ने नहीं सुना,
थाने में एस एच ओ के सामने मुझे पेश किया गया, जहाँ मुझे अनेक
अशोभनीय शब्दों से नवाज़ा गया और फिर मुझे लॉकअप में बंद करने का
आदेश हुआ, अबतक मेरे अन्दर का संकल्प अंतिम साँस ले रहा था, मैंने एस
एच ओ महोदय से बंद करने की वजह जानना चाही तो मुझे बताया गया की “
सरकारी कार्य में बाधा पुहचाने की गंभीर धारा मुझ पर हैं”, जिस पर जमानत
कोर्ट से ही मिलने का प्रावधान है, और एक चालान और थमा दिया जिसमे बड़े
बचकाने आरोप थे जैसे की - हेडलाइट पर जिस कंपनी का ग्लास रिफ्लेक्टर था
उसका स्टीकर लगा हुआ है, एक साइड इंडीकेटर का रिफ्लेक्टर क्रेक पाया गया
और सबसे गंभीर आरोप था मेरे हेलमेट को मानक स्तर का न होना .

अब तक बचा कुचा संकल्प का बोध भी दम तोड़ चुका था अब मैं
सामान्य नागरिकों जैसे रिरयाने लगा था और कुछ लेन – देन कर छुटकारा
पाने का प्रयास करने लगा. पर “ ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा ” का संकल्प
अपना रंग दिखा चुका था, मुझे बताया गया की आज शुक्रवार होने की वजह से
कुछ नहीं हो सकता, सोमवार को कोर्ट में चालान पेश किया जावेगा तब तक
आपको जेल भेज देते हैं. मैं रोता पीटता रहा पर मेरा बडबोलापन मुझे ले डूबा
था , अब पिछले दो सालों से निलम्बित हूँ २४ घन्टे से ज्यादा समय जेल में
रहने की वजह से निलम्बित चल रहा हूँ, और कोर्ट का चक्कर लगा रहा हूँ.
मित्रों, आप सभी मेरे हश्र से विचलित नहीं होना, और न कभी रिश्वत
लेना और न रिश्वत देना पर किसी को सुधारने की कोशिश कतई नहीं करना
. एक विनती और है कि मेरे लिए दुआ करना कि मुझे कोर्ट से बरी हो जाऊं,
जिससे नौकरी पर पुन: बहल हो सकूँ.


( आर के बाजपेयी )
प्रभारी हिन्दी अधिकारी