चिड़िया बना रही थी घोंसला

चिड़िया बना रही थी घोंसला


तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,
चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में।


पल भर में आती पल भर में जाती थी वो।
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।


बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,
कोई तिनका था, ईंट उसकी कोई गारा।


कड़ी मेहनत से घर जब उसका बन गया,
आए खुशी के आँसू और सीना तन गया।



कुछ दिन बाद मौसम बदला और हवा के झोंके आने लगे,
नन्हे से प्यारे प्यारे दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।


पाल पोसकर कर रही थी चिड़िया बड़ा उन्हे,
पंख निकल रहे थे दोनों के पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।



इच्छुक है हर इंसान कोई जमीन आसमान के लिए,
कोशिश थी जारी उन दोनों की एक ऊंची उड़ान के लिए।


देखता था मैं हर रोज उन्हें जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए ,
पंख निकलने पर दोनों बच्चे मां को छोड़ अकेला उड़ गए।



चिड़िया से पूछा मैंने तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,
तू तो थी मां उनकी फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए।


इंसान के बच्चे अपने मां बाप का घर नहीं छोड़ते,
जब तक मिले न हिस्सा अपना, रिश्ता नहीं तोड़ते ।


चिड़िया बोली परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है,
आज के इंसान का बच्चा मोह माया के दरिया में गर्क है।


इंसान का बच्चा पैदा होते ही हर शह पर अपना हक जमाता है,
न मिलने पर वो मां बाप को कोर्ट कचहरी तक ले जाता है।


मैंने बच्चों को जन्म दिया पर करता कोई मुझे याद नहीं,
मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे,क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं!...



दीपिका गुप्ता
प्रशिक्षु 
दूरदर्शन केंद्र भोपाल