आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में


रोज सुबह उठते एक ही सवाल कि 

आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 

दिनभर ऑफिस में काम और उसके बीच एक ही सवाल

 कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


रात में थककर ऑफिस से घर आते - आते फिर वही सवाल

 कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


नींद से बोझिल आँखे होने पर भी 

सोने से पहले एक ही सवाल 

कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


जब सोने लगता हूं तो नींद चली जाती है 

टहलने रोज छत पर फिर सोचता हूं 

कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


रोज यादों का गला घोंटता हूं 

उसमें कुछ अपने थे जिन्हें समेटता हूं 

तेरी याद तो गई नहीं दिल से 

न गई तेरी खुशबू मेरे कमरे से 

बिखर गई है तू मेरे जीवन में तेरे जाने के बाद फिर यही ख्याल 

कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


दोस्त मिलते हैं और पूछते हैं मेरा हाल

 कैसे बताऊं मैं उन्हें 

कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


शरीर के साथ-साथ मन भी थक चुका है फिर सोचता हूं इतनी उदासी मेरे अंदर कहां से आ गई 

मेरी खुशमिजाजी कहां गई मैं 

फिर वही खुद से सवाल जिसका नहीं कोई जवाब कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में 


पूरी उम्र खो दी सोचते -  सोचते 

आज तक नहीं समझ आया 

कि आखिर चल क्या रहा है जिंदगी में.. 



के के बाथम्

उच्च श्रेणी लिपिक

दूरदर्शन केंद्र भोपाल