पहचान


पहचान 

अमित का तबादला कुछ दिन पहले ही कानपुर हुआ था ।यह शहर अमित के लिए बिल्कुल नया था। सोमवार से शनिवार तक कार्यक्रम में व्यस्तता के कारण आसानी से बीत जाता था, परंतु रविवार का दिन अमित के लिए बोरियत वाला दिन होता था ।रविवार के दिन अमित मन बहलाने के लिए मोतीझील पार्क घूमने चले गए ।पार्क में टहलने के लिए बने फुटपाथ पर चलते चलते उन्होंने देखा कि सामने से अपने गांव के विजय सिंह चले आ रहे हैं ।

अमित आगे बढ़कर विजय  के सामने पहुंचकर - नमस्ते सर, मैं अमित कसेसर गांव का रहने वाला हूं, मैं हेड मास्टर साहब का लड़का हूं मैं ।यहीं पर टैक्स ऑफिस में कार्यरत हूं ।
विजय - कौन हेडमास्टर? मैं तुमको नहीं जानता ।कहां कहां से चले आते हैं ?पहचान निकालकर ।अपने पीछे चलते हुए बॉडीगार्ड की तरफ देखते हुए इशारा किया- देखो ड्राइवर से कहो घर वापस चलना है ।मूड खराब कर दिया इस लड़के ने ।

बॉडीगार्ड भाग के पार्किंग की तरफ गया और गाड़ी लेकर साहब के पास  आ गया। विजय सिंह घर वापस आ गए।
अमित हक्का-बक्का हो गया और मायूसी के साथ चलते हुए सोचने लगा कि गांव में अक्सर चर्चा होती थी कि विजय सिंह कानपुर के बड़े उद्योगपति हैं, इनकी फैक्ट्री चलती है ,ये काफी बड़े लोग हैं इनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता ।अमित को अपने ऊपर ग्लानी हो रही थी कि उसने विजय सिंह का मूड खराब कर दिया ।ये कितने व्यस्त लोग हैं कितनी मुश्किल से समय निकालकर यहां टहलने आए होंगे ?उसके कारण व्यवधान हो गया ।

समय यूँ ही निकलता रहा।

एक दिन विजय सिंह अपने नगर कार्यालय में थे ।फैक्ट्री के मैनेजर का फोन आया वह बहुत घबराया हुआ था ।
विजय- क्या बात है तुम बहुत घबराए हुए नजर आ रहे हो ?
मैनेजर - सर,टैक्स विभाग वाले आये हैं।

विजय -ठीक है इसमें घबराने वाली क्या बात है जो भी पेपर मांगे दिखा दो ।
मैनेजर - सर घबराने की ही बात है।टैक्स कम जमा करने के कारण 1000000 का जुर्माना  लगाया है।
विजय - ऐसा कैसे हो गया?समय पर टैक्स जमा क्यों नहीं हुआ?
मैनेजर - सर,आपको पहले भी बताया था कि टैक्स कम जमा हो रहा है,तो आपने कहा था कुछ नहीं होगा,सब चलता है ।
विजय - देखो , कुछ ले-देकर बात करो।
मैनेजर - सर, सब कुछ करने के बाद ही आपको फोन कर रहा हूं टीम के साथ कमिश्नर साहब भी है, इसलिए कुछ नहीं हो पा रहा है ।
विजय सिंह सोच में पड़ गए । अब क्या हो सकता है? ये समाचार अखबार या मीडिया में आ गया तो बहुत बदनामी होगी। इसी सोच में डूबे थे कि अचानक याद आया कि अपने गांव का लड़का अमित पार्क में मिला था। वो टैक्स ऑफिस में ही है ।
अगले दिन विजय सिंह टैक्स ऑफिस अमित से मिलने पहुंच गए।
विजय - अरे बेटा अमित कैसे हो ? माफ करना उस दिन पार्क में पहचान नहीं पाया।बाद में मुझे बहुत पछतावा हुआ।  क्या करूं काम  का इतना प्रेशर रहता है कि कुछ भूल हो जाती है।
अमित -  सर, आप मुझसे मिलने आये हैं, मुझे विश्वास नही हो रहा।
अमित तुरंत चपरासी बुलाकर अच्छी कॉफी आदि लाने के लिए कहता है ।
विजय कुछ इधर-उधर की बात करने के बाद कॉफी पीते हुए - देखो अमित , मैं तो अपना काम ईमानदारी से करने में विश्वास रखता हूं परंतु आजकल स्टाफ बहुत लापरवाही से काम करता है । फैक्ट्री चलाना बहुत मुश्किल हो गया है ।
अमित -  सर,  मैं आपकी परेशानी समझता हूं।
विजय -  हमारे स्टाफ की लापरवाही के कारण थोड़ा टैक्स कम जमा हुआ है। ये लोग ठीक से काम नहीं करते हैं, शर्मिंदा मुझे होना पड़ता है। कल तुम्हारे ऑफिस से टीम गई थी । 10 लाख का जुर्माना लगा दिया है। अमित - सर , आप परेशान मत होइए।  मैं आपको कमिश्नर साहब के पास ले चलता हूँ, सब ठीक हो जाएगा ।
अमित कमिश्नर साहब से मिलकर भविष्य की जिम्मेदारी लेते हुए जुर्माने की राशि माफ करवा देता है। विजय सिंह तुरंत बकाया राशि का चेक साइन करके कमिश्नर साहब को धन्यवाद के साथ जमा करा देते हैं।अमित से विदा लेते हुए टैक्स ऑफिस से बाहर निकलते ही विजय सिंह के चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखर गई । यह सोचते हुए खुश हुए कि आज जान-पहचान ने बचा लिया अन्यथा बड़ा नुकसान हो जाता।
समाप्त

ओम प्रकाश चौरसिया