निश्छल बचपन

निश्छल बचपन

माँ के आंचल में किलकरिया करता बचपन,
पिता की आगोश में सुरक्षा का अनुभव करता,
दादा दादी के बुढ़ापे को मासूम मुस्कान से संवारता ।
प्रकति की सम्पूर्ण निश्छलता एवं सुंदरता को,



अपने में समेटता हुआ ,
निश्छल नेत्रों से छलकपट से भरी दिन को निहारता।
निस्वार्थ प्रेम की आस में,
माँ की गोद में सिमटा ।
कब टूटेगी ये स्वार्थ की जंजीरे ,
कब होगा ये डरा-सहमा बचपन आज़ाद ,
कब होगी निश्छल बचपन का उन्मुक्त विचरण।



देबाशीष चक्रवर्ती
अभियांत्रिकी सहायक
आकाशवाणी राउरकेला
पिन-769042
मोबाइल न-   9438210546