पीढ़ी अंतराल


आज  आए दिन युवा चरित्रों पर प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं ︳यह प्रश्न चिन्ह मात्र अपरिचित द्वारा ही नहीं स्वयं के माता पिता द्वारा भी उठाए जा रहे हैं︳ जन्मदाता, पालनकर्ता सोचते हैं विश्वविद्यालयों में जाकर, जीवन के किशोर वर्ग की सीमा आते- आते उनके पुत्र- पुत्रियां मार्ग भूल जाते हैं या यह कहे पदभ्रष्ट हो रहे हैं, उचित राह से भटक रहे है︳ 


युवा वर्ग सोचते हैं कि उनके माता-पिता मात्र अपनी रूढ़िवादी विचारधारा, आदर्श एवं संस्कारों के कारण अपने जीवन के मूल्यों में बाँध कर उनसे उनकी खुशियां छीनना चाह रहे हैं︳ दोनों ही अपनी दृष्टि में जीवन के उचित पक्ष को देख रहे हैं पर मैं पूछना चाहती हूं, क्या दोनों में से किसी ने भी सिक्के के विरोधी पहलुओं पर विचार किया है ? उत्तर सामान्यतया नहीं है︳ मां बाप बच्चों की संगति को, तो बच्चे उनकी सीमाओं और बंधनों को दोष दे रहे हैं︳

 तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में सामान्यतया लोगों की शिकायत होती है कि उनका पुत्र या पुत्री अपने जीवन के साथी को स्वयं ढूंढने लगे हैं︳उनका पुत्र छात्राओं और पुत्री छात्रों से संबंध को महत्व दे रहे हैं︳

 मैं उन सभी सज्जनों से कहना चाहती हूं कि उनके बच्चों में संस्कार की कमी या बुरी संगति का दोष नहीं है यह उम्र का प्रभाव है जो विपरीत लिंग के बीच एक आकर्षण का संबंध बनाने पर बाध्य करता है ︳इनमे कुछ संबंध दिल की गहराइयों से बन जाते हैं जो किसी भेदभाव के तराजू पर नहीं तो ले जा सकते हैं और इन पर बंदिशे लगाना गलत है︳ यह आज के युग में अत्यंत कम है︳ और आकर्षण का प्रभाव मस्तिष्क पर यह पता है कि किसी से बात करने में, साथ वक्त बिताने में, उसकी प्रत्यक्षता, उसके स्वयं पर ध्यान देने पर खुशी की अनुभूति होती है︳

 पर यह तो है आज की युवा पीढ़ी का पक्ष वरिष्ठ जनों के विचार के पहलू के संदर्भ में मेरा मानना है मां बाप जीवन की वह डोर है जिन्हें देखने पर कच्चे धागे से प्रतीत होता है पर तोड़ पाना बहुत कष्टदायक है︳

 माता पिता सोचते हैं उनके पुत्र पुत्री पदभ्रष्ट हो रहे हैं, शिक्षा से ध्यान बट रहा है︳ साथ ही माता पिता चाहते हैं कि युवा वर्ग के लिए उचित अनुचित में भेद करने में असमर्थ हैं︳ हम यह क्यों भूल जाते हैं कि माता-पिता से बढ़कर हमारे लिए कोई अच्छा सोच ही नहीं सकता और माता पिता सपने में भी हमसे हमारी खुशियां छीन नहीं सकते ︳ तो क्या जो हमारे लिए अपनी सारी इच्छाएं, सुविधाएं  त्याग सकते है, उनकी एक इच्छा हम अपनी एक ख़ुशी भी त्याग नही सकते ? बागवान फिल्म में अमिताभ के शब्दों ने सबको प्रभावित किया पर क्या अज भी उन शब्दों के लिए किसी के अंतर्मन में रिक्त स्थान है?

 मैं भी एक युवा वर्ग से संबंध रखती हूं पर मैं अपने माता पिता के लिए अपनी खुशी क्या,  संपूर्ण जीवन न्यौछावर करने के लिए सहर्ष तैयार हूं︳

 एक अनुरोध के साथ मैं यह आशा करती हूं कि सभी वर्गों के लोग दूसरे पक्ष के पहलु को स्वयं की जगह रखकर सोचे, कश्मकश स्वतः ही समाप्त हो जाएगी︳  

ममता राज 
अभि. सहायक
दूरदर्शन केंद्र भोपाल