मैंने साये से बोला तू काला बहुत है,
साया बोला सच बोलूं तू
जीवन से जला बहुत है
मैंने कहा तेरी तासीर
ही काली है
वो बोला तू मुझो चाहता
है पीछा छुड़ाना
तो अपने को अंधेरे कमरे
में बंद कर ले
मैं स्वयं चला
जाऊंगा या फिर
कर ले अपने चारों
तरफ रौशनी
मैं बहुत सारे
हिस्सों में बंटकर उजला हो जाऊंगा
मैंने अपने को कमरे
में बंद करके कर लिया अँधेरा
साया मेरा टहलता रहा
कमरे के बाहर
और बोला मैं तेरे बिना
रह नहीं पाऊंगा
मैंने अपने चारों तरफ
कर ली रौशनी
वो इतने हिस्सों में
बंटकर भी मुझे नहीं छोड़ पाया
और बोला मैं तुम्हारी
ही परछायी हूं
तुमसे अलग मेरा
अस्तित्व ही नहीं है
तुम्हारे साथ ही मैं
इस दुनियां में आया हूं
तुम्हारे साथ ही इस
दुनियां से जाऊंगा
तुम जैसा अच्छा-बुरा
करोगे मैं वैसा ही करूंगा
तुम उठाओगे जो
हथियार मैं भी वही उठाऊंगा
तुम जिस बुराई को
मारोगे मैं उसके साये को कर दूंगा ख़त्म
मैं मगर इस दुनियां की
तरह तुम्हें अकेला नहीं छोडूंगा
मैं हर समय तुम्हारा
साथ दूंगा,
तुम अगर हँसते हुए
इस दुनियां से जाओगे
मैं तुम्हारे साथ ही
हंसते हुए इस दुनियां से आऊंगा l
(के. के. बाथम
‘कृष्ण’)
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