कहानी का परिवेश है, मंदसौर और नीमच के बीच मुख्य-सड़क से जुड़े गाँव की जहाँ वांछड़ा जाति के लोग वेश्यावृति का घंघा करते हैl
मैं
और मेरी टीम वांछड़ा जाति पर जानकारी लेने यहाँ पहुंचे थे l चूँकि ऐसी जगहों पर
जाना जोखिम से भरा होता है, अत: हम लोगों ने एक समाज सेविका (जिनको वो लोग बहुत
आदर करते थे) को साथ ले लिया जैसे ही उन्हें पता चला की यह एक मिडिया के लोग है, उन्होंने
बात करने से मना कर दिया...
फिर
भी कुछ लोग एक सामान्य सी बात करके चले गये...
समाज
– सेविका ने हमें बताया की यही एक मात्र लोग हैं, जो “बेटी पैदा होने पर खुशियाँ
मनाते हैं l”
वो
इसलिए की अगर बेटी पैदा होगी तो वेश्यावृति से घर का काम चलता रहेगा,
शाम
को हम लोग अपने गेस्ट-हाउस में आ गये... रात होते ही अचानक मन में ख्याल आया की
क्यों न उस मुख्य सड़क का भ्रमण किया जाये जहाँ पूरी रात राह चलते वेश्यावृति का
काम चलता है l
रात
के लगभग 10:00 बजे हमारी गाड़ी उस हाइवे पर दौड़ने लगी...
सड़क
के दोनों ओर महिलाऐं खड़ी थी कोई भी गाड़ी रूकती... वो लोग दौड़कर उसके पास पहुंच
जाती... और कुछ उन गाड़ियों में बैठकर चली जाती...
तभी
हमारी नजर एक कोने में खड़ी अछेड़ महिला पर पड़ी... जिसके साथ एक नाबालिग लड़की भी खड़ी
थी...
गाड़ी
के ब्रेक लग गये...
“वह
महिला पास आई और बोली... बाबूजी मेरी बेटी से ज्यादा खुबसूरत लड़की पूरे गाँव में नहीं
है”
मैं
पूरी रात सो न सका उस मासूम लड़की का चेहरा रात भर मेरी आँखों में घूमता रहा l
सबेरा
होते ही मैं समाज-सेविका के घर चला गया... रात का पूरा वाक्या बताया और चुप बैठ
गया...
चाय
पियोगे !
मैंने
हामी भर दी... उन्होंने आवाज लगाई बेटी चाय लाना...
मैं
चुपचाप खिड़की के बाहर ताकता रहा l
अचानक
चुप्पी टूटी... चाय लीजिए
अरे
बेटी घन्यवाद.... और बताओ क्या करती हो ?
जी
माँ के साथ समाज सेवा का काम करती हूँ... बहुत ही निश्छल, निष्कपट सा मासूम चेहरा...
मैंने
कहा ये बेटी तो आप पर ही गयी है...
हाँ
इसको विरासत में समाज-सेवा ही मिलना है... मुस्कराने लगी...
बेटी
अंदर चली गई... यकायक उन्होंने कहा “यह मेरी सगी बेटी नहीं है... मैंने इसे इसी
दलदल से बाहर निकाला है l”
“हाँ
एक बात जरुर है मुझे इसके लिए कीमत चुकानी पड़ी l”
खैर
मेरे तो कोई बच्चे नहीं है... जब भी इसका चेहरा देखती हूँ... लगता है... ईश्वर ने
मुझे इस पुण्य काम के लिए चुना...
मेरा
जीवन घन्य हो गया इसको देखकर मुझे जो आनंद की अनुभूति होती है... आप उसकी मैं चुपचाप
उनकी नजरों की तरफ एक टक देख रहा था, एक अजीब सी सिरहन दिल में हो रही थी...
चाय
ठण्डी हो जायेगी... उनकी आवाज ने अनंत चुप्पी में मिश्री छोली....
“मैंने
कहा आप जैसे लोग ही सच्चे गुरु कहलाते हैं... मैं तो आपकी आज्ञा से आज से आपको
अपना गुरु मानता हूँ”
“ठीक
है अगर गुरु मान ही लिया है... तो गुरु मंत्र भी ले लो...”
“बेटी बचाओ... बेटी
पढ़ाओ”
(देवेश कुमार
पाण्डेय)
अभियांत्रिकी सहायक