बेटी को मत समझो भार जीवन का है ये आधार



दरवाजे पर घंटी घनघना रही थी l सोधे से उठकर मिसेन शर्मा ने दरवाजा खोला तो क्या मुहल्ले के सारी औरतें खड़ी हुई थी l

      बधाई हो बधाई हो मिसेज शर्मा – सारी औरते एक स्वर में बोली l
      मिसेज शर्मा – अरे काहे की बधाई l

      अच्छा, घर में लक्ष्मी आई हैं l आपको तो नगर ढ़िढ़ोरा दिरवाना था l
मिसेज शर्मा – अरे-अरे, बस भी करो, लड़की ही हुई है कोई लड़का थोड़े ही ना जो....
      अरे लड़की तो लक्ष्मी है, साक्षात् लक्ष्मी l अव तो लड़की ही है जो लक्ष्मी के साथ-साथ दुर्गा जी तो सरस्वती जी l

      अच्छा चलो-मिसेज शर्मा सबका मुंह तो मीठा करवाओ l मिसेज शर्मा के मिठाई बार कर सभी को विदा किया l

      जबलपुर की घनवंतरी नगर कालोनी में शर्मा परिवार रहता है l जिसमें उनका बेटा दिनेश है, जिसके दो बेटियाँ हैं l और शर्मा, शमयिन रहते l भरापूरा परिवार, भौतिक सुख सुविधाओं से सम्पन्न है l शर्मा जी एक ही आस थी, कि उसका एक नाती भी होता l दिनेश की बड़ी बेटी दिव्या छ: बरस की थी l अब दूसरी भी बेटी से शर्मा परिवार में कुछ मायूसी सी थी l

      दिनेश दिन भर कार्यालय के कार्यो में व्यस्त रहता l अक्सर देर रात घर आता l दिनेश की पत्नी रत्ना दोनों बेटियाँ का लालन पालन बड़े सलीके से कर रही थी l पर उसके सास-ससुर को ये फूटी आँखों भी न सुहाता l वो रत्ना को अक्सर ताने यारा करती l 
  
      धीरे-धीरे समय बीतता गया l दिनेश की दोनों बेटियों दिव्या और क्षमा कब बड़ी हो गई, पता ही नहीं चला पहले स्कूल, फिर स्कूल से कालेज और बड़ी दिव्या तो अब माइक्रोसाफ्ट में जांब भी कर रही थी l दिनेश के बाल काले से सफेद हो चले l बेटी के व्याह की चिंता, और फिर बूढ़े शर्मा शर्माइन की तीमारदारी की चिंता उसे खाजे जा रही थी l रिटायरमेंट में बाद शर्मा जी घर पर ही समय बिताते l

      शर्मा जी ने एक दिन दिनेश से कह ही दिया अरे तू दिन भर करता क्या है l अरे बेटी का ब्याह करना है कि घर पर ही बिठाना है l दिनेश को आते जाने घर पर माँ-बाप से उलाहने सुनने का मिलने लगे l अब तो रत्ना भी इसी चिंता में रहने लगी कि बेटी का अच्छा सा रिश्ता आपे तो ब्याह कर दें l     
इंटर करने के बाद ओरी क्षमा ने पिता से कहा में तो डॉक्टर बनना चाहती हूँ पापा l मैनें ए आई पी एम टी और एक्स की परीक्षा का फार्म भी भरा है l तभी शर्माइन की पीछे से आवाज आई l
अरे घर का भी काम काज किया कर, चौका-चूल्हा नहीं करेगी तो सासरे में जाकर खानदान की नाक करवायेगी क्या !

क्षमा रुआंसी हो गई l पापा-पापा में पढ़ना चाहती हूँ l

तभी रत्ना ने उसे अपने आंचल में भर लिया- वह फफक-फफक कर रो पड़ी l रत्ना ने कहा हां हां हम अपनी बिटिया को पढ़ाये जे खूब पढ़ायेगें l क्यों जी l दिनेश ने भी हां भर दी l
क्षमा ने ए आई पी एम टी की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली l उसका बुलावा नागपुर मेडिकल कालेज में प्रवेश के लिये आ गया l

तभी अचानक दिनेश की तबियत खराब हो गई l उसे आफिस से छुट्टी लेनी पड़ी, इलाज और घर खर्च में उसकी जमा पूंजी धीरे-धीरे सरकने लगी l उसने एक दिन क्षमा को पास बुलाया l खूब लाड़ दुलार किया l फिर कहा-बेटा तू बहुत होशियार तेरा मेडिकल में सिलेक्शन हो गया, तू नाना चाहती हैं, पर – वह चुप हो गया l

पर, क्या पापा क्षमा में पूछा l

कुछ नहीं बेटा, मैं भी चाहता हूं कि तू मेडिकल में पढ़ाई करे, पर पैसे का इंतजाम ---- तू तो जानती है न घर की स्थिति l

हूं, पापा क्षमा ने कहा – फिर वह मायूस हो गयी l इतने में वहाँ दिव्या भी आ गई l
मेंने सब सुन लिया है l पापा – आप चिंता मत करो क्षमा की पढ़ाई मैं कराऊँगी l मैं भी तो आपका बेटा हूं न पापा l फिर आप ऐसी बात क्यों करते हो l मैं भी नौकरी कर रही l अच्छा खासा कमा लेती हूं l

दिव्या की बातें सुनकर दिनेश की आंखों में चमक आ गई l पर थोड़ी ही देर में उनके माथे पर फिर चिंता की लकीरें उमर आई l फिर तेरा ब्याह भी तो दिव्या निरंतर उसकी ओर देख रही थी l मेरे ब्याह की चिंता तो न करो पापा l

सब ठीक हो जायेगा l

एडमिशन होने पर दिव्या ने ख़ुशी खुशी क्षमा को मेडिकल दाखिला दिला दिया l

समय गुजरता रहा दिव्या आजकल साफ्टवेयर इंजीनियर थी और क्षमा ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर मेडिसिन में एम डी कर लिया l

क्षमा जब नागपुर में थी, तब दिनेश का फोन आया बेटा घर आ जाओ दादा जी की तबियत बहुत खराब है क्षमा पहली फ्लाइट से जबलपुर आ गई l उसने देखा दादा जी की तबियत खराब हो रही थी l पर वह अस्पताल जाने तैयार नहीं थे l

उसने उनकी नाडी देखी नब्ज धीरे चल रही थी चेहरे पर पसीना l साँस लेने में दिक्कत हो रही थी l उसने तुरंत एंबुलेंस बुलाकर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया l उन्हें का कार्डियक अटैक था l डॉक्टर ने एंजियोप्लास्टी  की सलाह दी l उसने खड़े होकर दादाजी इलाज कराया l

दादाजी स्वस्थ होकर घर आ गये l क्षमा ने कहा दादाजी अब आपको छोड़कर कभी नहीं जाऊँगी l तब शर्मा जी मुंह से निकला बेटा तुम बेटी नहीं मेरी बेटा हो कोई बेटा भी इतना नहीं करता जितना तूने किया है l

क्षमा दिव्या, दिनेश, रत्ना सभी की आंखो से आंसू झर झर हो रहे थे शर्माइन क्षमा को अपने आंचल में भरी हुई रो रही थी l

(राकेश कुमार नेमा)

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