पाथेय


 पाथेय

यूं तो खाली हाथ हूं 
पर साथ है 

धधकती धूप की ओट में 
अधखिली चांदनी 
गुनगुनाती धूप 
 और पहली बारिश की 
सौंधी खुशबू 
धूप की पत्तियों में 
हरे रिबन से बंधे 
जंगली फूल 

गुंजन करती मंद समीर 
ठिठुरती शाखों पर पड़ती 
सिसकती धूप

 कलरव करती जलधारा 
रेत के घरौंदे 

आशाओं का उन्माद 
आकांक्षाओं का सैलाब 
अनवरत यात्रा के पाथेय पर।

संजय कुमार गुजरे 
टी वी आर सी बैतूल मध्य प्रदेश