बारिश में मुंडेर पर भीगते हुए भी मेरा इंतजार करते मेरे मित्रों (पक्षियों) के प्रेम को देखकर कुछ लिखा है ..
अदृश्य प्रेम..
बारिश बहुत है
फिर भी..
कर रहे हो भीगते हुए मुंडेर पर
बैठ मेरा इंतजार..!
मैं घर पर बैठ
सोच रहा था तेरे
आशियाने का..
कहां होगे,
पर मिले मुंडेर पर
बारिश मे भीगते
हुए ..
तेरा अपनापन
भिगा गया मेरा मन !
सुनो जब मिलने की तडप दोनो को है ..
तो कभी घर भी आया करो..
तेरी आस में खिड़कियां खुली
रखता हूं ..
मै सुकून से रहूं और तुम
भीगते रहो ..
अच्छा नहीं है , घर आ जाया करो..
यूं न मुंडेर पर बैठ भीगा करो!
यूं न मुंडेर पर बैठ भीगा करो !!
✍️ आर के बाजपेयी
सेवानिवृत्त सहायक निदेशक (अभि.)