अवकाश -

अवकाश



जीवन के हर पल संघर्ष से
अब थकने लगा हूं
सफल होने की अंधी दौड़
अब दौड़ी नहीं जाती
अवकाश चाहता हूं |



इस दौड़ती भागती जिंदगी में
फुर्सत की सांस लेना चाहता हूं
अपनों के दुख - सुख में
शामिल होना चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं |

चाहता हूं कि अब बचे-खुचे दिन
अपनी मर्जी से बेपरवाह गुजारूं
मर्जी से हँसु-  रोउ
जो मन भाए करना चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं |

दिल ही नहीं चेहरों को भी
पहचानने का वक्त चाहता हूं
मोबाइल लैपटॉप से  संन्यास चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं|

रिश्तो में जमीन खाक पर
फूल खिलाना चाहता हूं
अपनों को अपना होने का
अहसास दिलाना चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं |

बहुत मन भर गया
झूठी आन बान शान से
बहुत मन भर गया
झूठे बड़प्पन के मान से
अब इन सब से निजात चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं |

मन करता है स्वच्छंद उड़ता फिरूं
तितली या परिंदा सा
मन की थकन जो उतार दे
वह एहसास चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं |

शरीर बोझिल अशक्त हो
मेरी वजह से मेरे अपनों का
कष्ट हो ऐसे  जीवन से
निजात चाहता हूं
अवकाश चाहता हूं|


आर के बाजपाई बाजपाई