मेक इन इंडिया एवम स्किल इंडिया एक दूसरे के पूरक

हिन्दी पखवाडा २०१७
प्रथम पुरुस्कार विजेता : तात्कालिक निबंध
[ हिंदी वर्ग ]
मेक इन इंडिया एवम स्किल इंडिया एक दूसरे के पूरक

प्रस्तावना –
“ चाँद – सितारों के सपने को , आओ हम साकार करें,
कदम – कदम से , हाथ – हाथ से, जोड़ें और निर्माण करें”

कोई भी देश आत्मनिर्भर बन कर ही प्रगति के सोपान तय कर सकता है. जब तक एक देश  अपनी दैनंदिन आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर रहेगा तब तक वह अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का संचय करने में अक्षम ही रहेगा.यह तो तय- सी बात है कि मुद्रा की बचत ही एक तरह से मुद्रा की कमाई कही जा सकती है.अत: एक ओर देश को आयात पर लगाम लगाते हुए, अपनी विदेशी मुद्रा की बचत करनी है , तो वहीँ देश के अन्दर ही उत्पादन कि गुणवत्ता और प्रमाण को बड़ा कर निर्यात अधिक से अधिक किया जा सकता है. अत: इस राह चलकर हम एक ओर बचत व् दूसरी ओर उत्पादन को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा कि आवक बढ़ाते हुए देश को फिर सोने कि चिड़िया बना सकेंगे. इन अर्थों में मेक इन इंडिया एवम स्किल इंडिया एक दुसरे के पूरक कहलायेंगे, क्योंकि बेहतरीन गुणवत्ता के बगैर निर्यात असंभव है और बगैर मेक इन इंडिया आयात रुक न सकेगा.


मेक इन इंडिया – आज से लगभग १० वर्ष पूर्व के वैश्विक परिदृश्य पर हम नज़र डालें तो पाते हैं कि देश कि आत्मनिर्भरता अपने निचले स्तर पर थी इस कारण हमें नई तकनीक पर आधारित अधिकतर उपकरण दुसरे देशों से आयात करने पड़ रहे थे. विशेषकर पिछले कुछ वर्षों में हमारी सरकारों ने संचार क्रांति की दिशा में अपने कदम तेज़ी से बढ़ाये. आज इन्टरनेट कि उपलब्धतता हो, अथवा टेलीविज़न
सिग्नल की; तेज़ी से हमारी क्रयशक्ति के भीतर आती जा रही हैं. आज से पन्द्रह वर्ष पूर्व एक मोबाइल पर फ़ोन कॉल रिसीव करने के भी शुल्क होते थे वहीँ आज कई कंपनियां महज़ ३००-४०० रुपये में अनलिमिटेड फ़ोन कॉल और डाटा उपलब्ध करवा रही हैं. आज का युग सूचना क्रांति का है अत: जनता को जितनी ज्यादा सूचना के साधन उपलब्ध होंगे देश कि प्रगति उतने गुना तेज़ी से होती चली जाएगी. टेलीविज़न सिग्नल भी आने वाले समय में एक ही केबल के माध्यम से मिलने लगेंगे, अर्थात उसी केबल से टेलीफोन , इन्टरनेट व् उसी से टेलिविज़न सिग्नल भी . वह भी उच्च गुणवत्ता वाले एच डी व् ४के तकनिकी पर आधारित . क्या यह संभव हो पता यदि हम उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर रहते. हमारे मेक इन इंडिया कार्यक्रम ने इस तरह के अन्य कई उपकरणों को हमारी पहुँच के अन्दर ला दिया. आज ४जीबी रैम व ६४ जीबी रोम का एक मोबाइल हैंडसेट मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत महज़ १३००० रूपये में उपलब्ध है.

स्किल इंडिया – अब चूँकि हमें मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत अधिक से अधिक उत्पाद भारत वर्ष के अन्दर ही बनाना है, तो हमें निश्चित रूप से ऐसे कर्मियों कि आवश्यकता होगी जो विश्वस्तरीय गुणवत्ता के उत्पादन बनाने में सहयोग दे पाए. ये तभी संभव हो सकेगा जब हम भारतवर्ष में स्किल डेवलपमेंट यानी कार्यकुशलता को विश्व स्तरीय बना पायें. अर्थात यदि मेक इन इंडिया महज़ एक नारा न रह जाये ऐसा सुनिश्चित करना है तो स्किल इंडिया पर अधिक से अधिक ध्यान दिए जाने कि आवश्यकता है. इसके लिए हम प्रक्षिक्षण पर सबसे ज्यादा जोर देने कि आवश्यकता है. आज हम खेलों कि दुनिया में ही देखें तो हॉकी व् कुछ अन्य खेलों में विदेशी कोच रख कर हमारे देश के खिलाडियों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा हेतु तैयार किया जा रहा है. १९९८ के आसपास टेलीविजन  प्रसारण कि विश्वस्तरीय कंपनियों  वर्ल्डटेल , टी डब्लू आई , चैनल ९ व् निंबस से दूरदर्शन ने कुछ इसी तरह का करार किया था और ५ वर्षों में क्रमिक रूप से दूरदर्शन के कर्मचारियों का हिस्सा बढ़ता गया और विदेशी कर्मचारियों कि हिस्सेदारी कम से कम होती चली गयी. आज के टेलीविजन  प्रसारण को देखें तो लगभग ९०% भारतीय कर्मचारी
होते हैं, जब प्रसारण एशिया के देशों में होता है. इन सब से अन्तोगत्वा लाभ तो हमारे देश को ही हो रहा है , चाहे वह  सूचना के क्षेत्र में हो या मनोरंजन के. मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत हम स्किल [कार्यकुशलता] को उन्नत कर रहे हैं जिसका सीधा फायदा रोजगार के क्षेत्र में मिलने लगा है. आज मेक इन इंडिया के माध्यम से हम विदेशों से रक्षा सामग्री सीधे न खरीद कर मेक इन इंडिया के तहत उनको भारत में निर्माण करने और उनका अनुरक्षण करने के करार कर रहे हैं

उपसंहार – उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हमें ज्यादा से ज्यादा उत्पादन देश के अन्दर करना है और विश्व स्तरीय गुणवत्ता के मापदंड पर खरा उतरना है तो स्किल इंडिया कार्यक्रम को वृहद रूप से लागू करना ही होगा. चूँकि आज हम “ग्लोबल – विलेज “ कि अवधारणा पर आ गए हैं, जिसे भारतीय संस्कृति में “वसुधैव- कुटुम्बकम “ के रूप में बहुत पहले भी प्रतिपादित किया जा चूका था. ऐसी स्थिति में हम कम गुणवत्ता वाले उत्पाद के सहारे विश्व से कदमताल नहीं कर पायेंगे. प्रक्षिक्षण का सबसे अधिक महत्व तो रहेगा ही साथ साथ देशभक्ति, ईमानदारी, कर्मठता और लगन के साथ हमे बेहतर से बेहतर उत्पादन देश के अन्दर ही करना होगा. 
अत: अंत में हम यह कह सकते हैं कि मेक इन इंडिया तो होना ही चाहिए परन्तु स्किल इंडिया के साथ. इन दोनों कार्यक्रमों के समन्वय से भारतवर्ष फिर से जगतगुरु का दर्जा पा सकेगा और विश्व कि सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित हो सकेगा. मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया एक दूसरे के पूरक हैं और होना भी चाहिए तभी हम सुनहरा भविष्य लिख पाएंगे .
“ कौन कहता हे आसमाँ में सुराख़ नहीं होता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों “
निबंधकार – संजय गुप्ता
अभियांत्रिकी सहायक

दूरदर्शन केंद्र भोपाल