रास्ते का पत्थर

मैं रास्ते का पत्थर 
मैं रास्ते का पत्थर 
कभी किसी को मिला रास्ते में
तो ठोकर मार दी उसने 
असहनीय पीड़ा सहकर भी चुप हो गया 
आंसू भी नहीं निकल सकते थे मेरे 

मैं रास्ते का पत्थर
कभी किसी नदी में गिरा तो 
लहरों से लडकर सालिग्राम बन गया 
कभी किसी बच्चे के हाथ आया
तो गेंद बन गया 
और ख़ुशी के मारे फूला न समाया 

मैं रास्ते का पत्थर 
कभी किसी शिल्पी के हाथ लग गया 
तो उसने कर  दी मेरे ऊपर नक्काशी 
और किसी महल की शान बनकर 
बरसों बरस एक ही जगह खड़ा रहा 
कभी मुझे मूर्ती का रूप देकर
 बिठा दिया गया मंदिर में 
फिर मैं सबकी श्रद्धा का पात्र बन गया . 

के.के.बाथम ”कृष्ण”