अब नहीं दिखता

अब नहीं दिखता वो टेलीफोन और बिजली के बिल की लाइन में,
अब नहीं घूमता वो सिटी बस और बाइक पर ,
अब नहीं पीता चाय शहर  के  टी स्टालों पर ,
अब नहीं  दिखता परचून की दूकान पर,
कहता तो है, वो अपने आप को जन  सेवक,
पर नहीं रहा उसमे कुछ भी आम जन  सा ,
जब से जीत गया है  वो इलेक्शन

रितेश दुबे
प्रसारण अधिशाषी