रोमांचक दौरा

संस्मरण
रोमांचक दौरा

शासकीय दायित्त्वों की पूर्ति के लिए हम  सभी को कभी न कभी असमान्य और असहज परिस्थितिओं से दो चार  होना अवश्य ही पड़ा होगा .  ऐसी विषम परिस्थियों में काम करने जो आत्मसंतुष्टि मिलती है वोह अतुलनीय और अविस्मरणीयबन जाती है. आज ऐसे ही एक रोमांचक अनुभव को आप सभी के साथ साझा करने जा रहा हूँ. बात इसी वर्ष ३० और ३१ मई की है दूरदर्शन द्वारा सीधे प्रसारण के लिए हम सभी  को : ओबी और डीयसयनजी  स्थापना का आदेश जरी हुआ. हम सभी अपने अपनें इंतजाम में व्यस्त हुए, प्रशन्न भी थे की चलो ६० किलोमीटर ही दूर है .


३० मई को आदेशित हुआ की सुबह १० बजे अकबरपुर जाना है कार्यक्रम स्थल का  निरिक्षण करने, तदनुसार हम यह सोच के निकले की ६० किलोमीटर ही दूर है स्थल देख कर अवाश्यक निर्देश आयोजकों को दे कर 2 बजे तक वापस आजावेंगे क्योंकि उसी शाम उपकरण वहां के साथ पुनह वह जाना था. वोह ६० किलोमीटर सड़कों की दयनीय हालत के वजह से 2 घने से अधिक का दुरूह सफ़र बन गया, कार्यक्रम स्थल कुछ भी नहीं वरन गल्ला मंदी का मैदान था और न कोई व्यवस्था निस्तार की , उपकरण सुरक्षा की , न पीने का पानी परन्तु एक शेड था जो हम सभी के कर्तव्य निर्धारण में मदद कर सकता था देख कर वापस आते आते ०४३० शाम हो चुकी थी , मुझे अपनी टीम के साथ तुरंत वहां के लिए वापस भी निकलना था , मेरे साथी अभ्यान्त्रिकी सहयोगियों ने साड़ी तैय्यारी कर रखिह थी. फिर भी निकलते निकलते ०६०० बज गए.

सेवा का रोमांच यहाँ से शुरू होता है, जिस पेट्रोल पंप पर डीजल भरवाने हमारे प्रशासन के साथी ले गए उसने अपरहियार्य कारणों से डीजल भरने से इनकार कर दिया काफी मान मन्नौवल के बाद मसला निपटा जब तक ०८०० बज चुके थे. खैर किसी तरह दुर्गमं सड़क पर चलते रहे बिना खाना खाए चलते रहे तब जाकर ११३० बजे पहुंचे . पहला झटका हमे लगा जब, वहां हम से पहले ओबी के साथियों ने बताया की यहाँ से ३०-३५ किलोमीटर के दायरे में कोई भी रात गुजारने का स्थान ( गेस्ट हाउस, लाज , होटल, सराय, धर्मशाला ) नहीं है , और यहाँ न निस्तार किओ व्यवस्था है और न ही कोई सामान मिल रहा है जिस को बिछा कर शेड के नीचे ही आराम किया जा सके उनकी दयनीय हालत और मच्छरों से सूजे हालत देख मैंने वापस भोपाल जा कर सूबे आने का निर्णय लिया क्योंकि साथियों को स्वास्थ्य रखना भी एक जिम्मेदारी थी.

रात को भोपाल के लिए १२०० बजे निकला वहां की सुरक्षा व्यवस्था करवा कर , रस्ते भर ताकते चल रहे थे की कहीं खाना मिल जाये पर नसीब साथ नहीं दे रहा था . ऐसा करते करते हम भोपाल से बीस किलोमीटर दूर तक आ पहुंचे तभी एक और गाज गिरी वहां पंचर हो गया. वैसे तो पंचर होना एक सामान्य घटना है पर  ऐसा हमारे साथ नहीं हुआ क्योंकि वहां की स्टेपनी पहले से पंचर थी और वहां चालक को टूल हैं की नहीं पता तक नहीं था. मरता क्या न करता हम सब भीड़ गए खोजबीनी में और किसी तरह पंचर स्टेपनी को आधा किलोमीटर लुड़का का ले गए रात ०१३० बजे किसी तरह हाथ पैर जोड़ कर पंचर बनवाया खाने की तमन्ना उस समय तक म्रत हो चुकी थी . यह दुश्वारी दूर हुई तो  नई सामने थी मालुम पड़ा की भोपाल में हुए किसी झगडे की वजह से हमीदिया अस्पताल के आसपास तनाव के हालत हैं , अब क्या करें सड़क पर भूके प्यासे हम सब अपने कर्तव्य को पूर्ण करने वापस अकबरपुर के लिए चल पड़े . वापस सुबह ०५०० बजे जब पहुंचे तो अपना दुखड़ा सुननाने की हिम्मत तक नहीं पड़ी अपने ओबी के साथियों की दुर्गति देख. दरअसल वहां रात में मूसलाधार वर्षा होने की वजह से शेड के अन्दर पानी आने लगा और हमारे साथी दरी ओड कर रात्ब हर बैठे  रहे. ग्रामीण इलाके में जहाँ खुले में शौच जारी थी वहां निस्तार की व्यवस्था लोहे के चने चबाने जैसे था, एक दो घर जिसमे शौचालय थे उनसे आग्रह कर जिनको अत्यावश्य था उनकी समस्या का समाधान हुआ.

हालत की भयानकता का अहसास आपको इससे होगा – जब मैंने अपने साथियों से चाय नाश्ते के लिए कहा तो उनका मासूम और असहाय जवाब था “ नहीं सर अगर इसकी वजह से प्रेशर बनेगा तो कहाँ जायेंगे “. अंतरात्मा तक हिल गए हम, उनको भूखे प्यासे अपने कर्तव्य को पूर्ण करने की जो ललक मैंने देखी वह अद्वितीय थी. में नतमस्तक हो गया उनकी कर्तव्य  के प्रति स्म्रपर्ण को देख. 

सभी विषम परिस्थतियों के बाद भी उच्च गुणवत्ता का प्रसारण करने में हम सब सफल हुए. एक दिन के उपवास के उपरांत यह मिली ख़ुशी अतुलनीय रही. में इन सबके त्याग और कर्तव्य पूर्ण करने के लिए संकल्पित आचरण को देख मेरा ध्यान -  सीमा में हम सभी की सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षा प्रहरी   की कर्तव्यपरायणता पर चला गया जो हम सब के लिए विपरीत परिश्थितियों में दिन रात अपना डगर बार छोड़ सजग खड़े रहते हैं. सच में मन से उनकी इस अतुलनीय सेवा के लिए हम सब देश वाशी उनके प्रति  कृतज्ञं हैं. राष्ट्र के लिए सपर्पित सभी सेवा कर्मियों और सैनिकों को नमन.  

राजेंद्र कुमार बाजपेयी
हिंदी अधिकारी