घरेलू हिंसा

पोस्टर आधारित कथा लेखन प्रतियोगिता” (प्रथम पुरस्कार विजेता)
हिन्दीतर वर्ग

“घरेलू हिंसा”
कथाकार – मीना श्रीवास्तव

         सुबह-सुबह मैं चाय की चुक्की ले रही थी तभी फोन की घंटी बनी l मैंने फोन उठाया और नम्बर नया देख थोड़ा मन उलझा . हैलो, कहते ही एक अजनबी महिला ने मुझे बताया कि आज आपकी काम वाली बाई नहीं आने वाली उसका फोन आया था एवं सबको सूचित करने को कहा था अत: आपका नंबर ढूढ़ आपको सूचित कर रही हूँ .

     मैं ख्यालो में खो गई, आखिर क्या हुआ, इसे नम्बर कैसे मिला मुझे क्यों नहीं फोन किया आदि विचारों में लीन घड़ी के कांटे दांते जा रहे थे l मेरी समझ में नहीं आ रहा था मेरी नौकरी सुबह 9.30 बजे से शाम 6 बजे तक की होती है मेरे बच्चे बाई थाने “सीता” के भरोसे पलते है l इसके भरोसे में निश्चित होकर कार्यालय जाती हूँ l अभी बच्चे स्कूल गऐ हुये है .मैंने सोचा इसके घर जाकर हाल जानती हूँ .
     मैंने गाड़ी उठाई पतिदेव को बताकर “सीता” के घर चल पड़ी . सीता को देखकर मन दुखी हुआ गालों और आँखों के पास लाल-काले निशान थे . मुझे देखकर सीता जोर-जोर से रोने लगी l मैंने चुप कराकर पूछा मुझे सारा किस्सा बताओ . सीता ने रोते हुये कहा- कल, मैं अपनी बिटिया को स्कूल से जा रही थी, शाम को सयम था, आते-आते रास्ते में मंदिर पड़ता है .नवरात्रि के करण भजन आदि चल रहे थे मैं मंदिर पर बैठकर सुनने लगी समय का पता न चला, फोन की घंटी भी ढोलक आदि के थाव में मुझे सुनाई न दिया l घर पहुंचते –पहुंचते 7.30 बज गए . पति को गुस्सा आया कि कहाँ चली गई थी, खाना नही बनाना आदि बोल कर लड़ाई शुरू कर दी . मैंने समझाया मगर गन्दी-गन्दी गालियों देकर कहने लगे जरुर किसी दुसरे आदमी के पास गई थी l मुझे भी गुस्सा आया मैंने भी कहा आप हमेशा मुझे हर बार बता के जाते हो क्या ? कहने लगे – चल हट, मैं कहीँ भी जाऊँ तुझे बताना जरूरी नहीं मगर तू औरत है तुझे सब बताना होगा चीटी खींचकर मारने लगे . बीच-बचाव में पड़ोसी भइया आकर समझाने लगे यह ठीक नहीं है “यह हिंसा है” तो कहने लगे मैंने मारा नहीं है मैंने धकेला है मात्र l एक पड़ोसन भाभी समझाने लगी तो कहने लगे ऐसा तो हर घर में होता है .समझते को तैयार नहीं रात ढलते सब समझा के चले गए तब और गुस्सा आया उन्होंने खाना-खाते-खाते थाली से मारा, मुझे खाना खाने भी नहीं दिया . बिटिया बीच में बोली तो उसे भी मारा, आज काम पर जाने नहीं दे रहे शक के विला पर . किसी तरह पेशाब का बहाना बनाकर पिंकी दीदी को खबर किया कि मैं आज नहीं आ रही . इतना कहकर बोली हम गरीब का दीदी ऐसा ही है दो दिन में ठीक हो जायेगे तब आती हूँ . सहना तो हमारी किस्मत है .आप चिन्ता मत करो मैं ठीक हूँ . आप अब जाओ आते ही आप पर भी चिल्ला सकता है .मेरे पास कोई उलर नहीं था l मैं वापस गाड़ी की तरफ बढ़ी .
     घर आते-आते में सोचतो रही l यह नारी हिंसा . घरेलू हिंसा की शिकार ज्यादा गरीब वर्ग है l
     कानून तो बहुत बनते है मगर कार्यवाही करना कितना मुश्किल है . वहाँ लोग बात कर रहे थे ऐसा हमेशा होते है . उसका मतलब यह तो नहीं कि यह सही है l हर बात के लिए नारी को दोषी मान लिया जाय . मर्द कभी-कभी कही को अपनी मर्जी का मालिक और औरत उसकी गुलाम l मन पीड़ा से भर उठा . सघर पहुंचकर मैंने गाड़ी खड़ी की, पतिदेव बोले जल्दी करो लेट हो रहा हैं .
     सहसा मन को बात चुभी और एकायक मैंने कहा आज आप आफिस से छुट्टी ले कर बच्चों की देखभाल करें . मैं आज आफिस जा रही हूँ क्योंकि हमेशा बाई “सीता” न आने पर यह नियम था कि मैं छुट्टी लूँ l मैंने आज एक नियम अपने घर में बदला एक शुरुआत की l यह समझ आया हिंसा से हर नारी की स्वयं लड़ना होगा मजबूर बन कर नहीं, लाचार बन कर नहीं . हमेशा से जो होता है उसे बदलना होगा साथ ही साथ मैंने एक निर्णय लिया अब हर “सीता” को शिक्षा दूंगी जाग्रत होने का यह लड़ाई अभी बहुत लम्बी है आज तो शुरुआत है.... !

कथाकार –मीना श्रीवास्तव
उच्च श्रेणी लिपिक
दूरदर्शन केंद्र भोपाल