घरेलू हिंसा – एक सामाजिक अभिशाप

पोस्टर आधारित कथा लेखन प्रतियोगिता” (दितीय पुरस्कार विजेता)
हिन्दीतर वर्ग

“घरेलू हिंसा – एक सामाजिक अभिशाप”
 कथाकार  ज्योति राधाकृष्णन

     दिल्ली शहर में एक धनाड्य परिवार की कहानी पर नज़र डालते हैं l संयुक्त परिवार की अद्भुत मिसाल थी इनकी जिन्दगी l परिवार में बूढ़े-माता-पिता, उनके तीन पुत्र सपरिवार काफी प्रेम से रहते थे l तीनों पुत्रों के संतानों में केवल एक ही पुत्री थी, जिससे वो सबकी काफी लाडली थी l दुसरे भाइयों की तुलना में बेटी “सुनीता” को काफी सराहा और प्रोत्साहन मिलता था l सभी उसकी हर इच्छा पूरी करते l परिवार के बड़े काफी पढ़-लिखे नहीं थे l उनका व्यापार पुश्तों से चला आ रहा था, अत: लडकों की उच्च शिक्षा पर कभी जोर नहीं दिया गया l
     समय के साथ जब “सुनीता” ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की, तो उसने विदेश जाकर आगे की पढ़ाई करने की इच्छा परिवार के सामने ज़ाहिर की l पहले परिवार वालों ने सहमति नहीं दी, वे चिन्तित थे कि इतने सुरक्षित व लाड़ों से पली बच्ची किसी देश में अकेले कैसे रहती l धीरे-धीरे सभी उसकी इच्छा के आगे नतमस्तक होकर विदेश में पढ़ाई के लिए भेजने का राज़ी हो गए l और वो तीन साल के लिए विदेश चली गई l

     समय बीतता गया, सुनीता अपनी पढाई में लीन हो गई l उसका परीक्षा परिणाम भी काफी उत्कृष्ट आने लगा, इससे परिवार में भी काफी खुशियाँ थी l आखिर वह समय आ गया जब सुनीता ने अपनी पढ़ाई पूर्ण कर ली और भारत अपने घर चली आई l
     परिवार में हर्षाल्लास का वातावरण बना, वे सभी अपने परिवार की पहली बेटी की उच्च शिक्षा से काफी प्रभावित व गौरान्वित थे l समय के साथ सुनीता की ज़िन्दगी के पहलू सामने आने लगा l उसकी विदेश में, भारतीय मूल के एक गुजराती लडके से प्रेम हुआ l वे दोनों आत्मनिर्भर होने के पश्चात विवाह बंधन में बंधना चाहते थे l लडके का परिवार गुजरात के बडौदा में रहता था, वह भी काफी सम्पन्न परिवार से था l विदेश में पढ़ाई के दौरान विदेशी संस्कृति से प्रभावित होकर वह उनका खान-पान, शराब की नशा आदि पसंद करने लगा, जो केवल एक शौक तक सीमित था l
     सुनीता ने विवाह के लिए उसी लडके की जिद की, और परिवार चालों ने उसकी इच्छा को मानते हुए उसकी शादी उसी लडके “मुकेश” से कर दी l विवाह के कुछ वर्षों तक वे काफी आनंद में रहे l मुकेश ने अपने पिता का व्यापार संभाल लिया था, जो काफी अच्छा चलता रहा l समय बीतता गया, उनका परिवार दो से तीन हुआ l जिम्मेदारियों के चलने दोनों पति-पत्नि में खिंचाव होता रहा पर समस्या का समाधान कुछ नहीं निकलता था l व्यापार में उतार-चढ़ाव भी आया पर “सुनीता” की सूझ-बूझ से काफी हद तक विवाद की स्थिति ढल जाती थी l
     मुकेश अपने आँफिस के तनाव को दूर करने के लिए कभी-कभी शराब भी पीता था, जो सुनीता को काफी नापंसद था l वह उन्हें सवन करने से रोकती थी, पर कोई असर नहीं हुआ मुकेश पर l मुकेश ने तनाव को दूर करने के लिए शराब को अहम् हिस्सा बना लिया l वह जब भी तनाव में रहता, पीता, जिससे धीरे-धीरे उसकी लत लग गयी l घर भी नशे में धुत होकर आता था, सुनीता उसे समझाती तो उसे खरी-खोटी सुनाता l समय के साथ नशे की आदत मुकेश पर हावी हो गई, उसके बिज़नस पर असर आने लगा l वह सुनीता को घर आकर छोटी-छोटी बातों पर मारने लगा l शुरू में वह सब सहन करती रही, उसने अपने मायके तक यह बात नहीं जाने दी l पर परिवार को पड़ोसियों ने बताई l
     मुकेश को सुनीता को मारने हुए, शोर-शराबा करते कई बार पड़ोसियों ने देखा l उसकी सहन-शक्ति खत्म होने लगी थी l वह अपनी पुत्री के लेकर मायके चली गई l दोनों परिवारों के समझाइश पर मुकेश माफ़ी माँग लेता था और सुनीता को बच्ची के साथ वापस ले आता l यह सिलथिला कुछ समय चला और एक दिन वो दुखदाई घडी आ गई जब मुकेश ने सुनीता को किसी बात पर मार-मारकर अध-मरा किया l पड़ोसियों की मदद से उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया l सुनीता ने पहले बात को घुपाना चाहा पर काफी समझाने के बाद उसने अपनी कहानी बयान की l डॉक्टरों ने पुलिस में हिंसा करने के लिए सुनीता के पति की रिपोर्ट दर्ज कराई l उसे 24 घंटे लोक-अप में रखकर काफी पिटाई की l काफी मारपीट के बाद पुलिस के सामने मुकेश ने अपनी गल्ती न दोहराने का वादा किया l उसे अपनी गल्ती का अहसास हुआ कि केवल कुछ मारपीट से उसकी हालत जब इतनी खस्ता थी, तो उसकी पत्नी उसकी हिंसा कितने सालों से चुप्पी साधे सह रही थी l इस विचार से उसे आत्म-ग्लानि हुई l अस्पताल में परिवार-कोंसलरों ने दोनों पति-पत्नी को समझाया कि इस प्रकार के माहौल से उनके संतान पर उसका दुष्प्रभाव पड़ेगा और उनकी सामाजिक छवि भी ख़राब होगी l
     सुनीता इतनी पढ़ी-लिखी होने के बावजूद अपने हक के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाई, जिससे वह शारीरिक हिंसा की शिकार हुई l निंरतर हिंसा से तन-मन पर इतना बुरा असर होता है, इसका एहसास इस कहानी से समझा जा सकता है l
     अंत में यह सभी के लिए ध्यान में रखने की बात है कि हम सभी एक-दूसरे का सम्मान करें l अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे और विशेष रूप से पुत्र की परवरिश सही ढ़ंग से करें ताकि वह अपने साथ-साथ नारी का सम्मान करें l

                          कथाकार ज्योति राधाकृष्णन
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