हिन्दी पखवाडा २०१७
प्रथम पुरुस्कार विजेता : तात्कालिक निबंध
[ऍम टी एस वर्ग ]
बेटी बचाओ और बेटी पढाओ : एक
विश्लेषण
मानव एक सामाजिक प्राणी
है , वह समाज में मिल जुल कर रहते हैं. समाज में नारी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है
. क्योंकि बिना नारी के समाज का विकास नहीं हो सकता है. पुरुष और नारी एक दूसरे के
पूरक हैं. पहले नारी को लाचार एवम बुद्धिहीन समझा जाता था और वह अपनी इस
लाचार एवम दयाहीन अवस्था को अपनी किस्मत
मानकर सहती जा रही थी.
अब समाज बदल रहा है, अब
नारी शिक्षित हो चुकी है और वह समाज में अपनी स्थिति समझ चुकी है, और उसमे सुधार
करने के लिए प्रयत्नशील है. प्राचीन समय में बेटी का होना एक अभिशाप से कम नहीं
था. जिस घर में बेटी का जन्म होता था उस घर में मातम छा जाता था , उसे हीन दृष्टि
से देखा जाता था .
हमारी सरकार ने नारी
कल्याण के लिए कड़े नियम बनाये हैं परन्तु उनका सही तरीके से पालन नहीं हो पा रहा
है. अगर बेटियां नहीं होंगी तो समाज का विकास रुक जावेगा एवम समाज बेटियां विहीन
हो जायेगा इसलिए बेटियों को बचाना है न की मारना . समाज में बेटी का होना इतना
अशुभ क्यों माना जाता है, जबकि बेटियां किसी भी बेटे से कम नहीं होती हैं. वह आज
हर क्षेत्र में बेटे से आगे हैं . बेटी अपने माँ बाप की सेवा बेटे से ज्यादा बड कर
करती हैं. बेटियां आज अच्छे अच्छे बड़े पदों पर शोभित हो रही है. बेटी बेटे की अपेक्षा
अधिक समझदार , कर्तव्यशील, और सहनशील होती हैं. वह हर मुश्किल का सामना संयम से
करती हैं. बेटियां आज हर क्षेत्र में आगे बढ रही हैं इसलिए बेटियों को हमे हमेशा
प्रोत्साहित करना चाहिए उन्हें कभी किसी से कमतर नहीं समझना चाहिए.
“ अगर बेटी है तो कल है “
अगर बेटी ही नहीं होगी तो समाज का निर्माण कैसे होगा, क्योंकि जो आज हमारी बेटी है
वही कल किसी की माँ , बहन, भाभी आदि नामों से जानी जाती है. बेटी विवाह के बाद
दोनों कुलों की रक्षा करती है. वह अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती है. ऐसी बेटी
क्या मारी जाना चाहिए ? वह तो हमारी शान होती है.
बेटी जितना अधिक पढेगी वह
उतनी ही अधिक आगे बढेगी और प्रगति करती जाएगी. बेटी तो हमेशा से माँ बाप के लिए
प्रतिष्ठा और सम्मान रही है. बेटियां ही अक्सर माँ बाप को समाज में उनका अधिकार भी
दिलाती हैं. हम कह सकते हैं की बेटी से ही हमारा घर संसार है. जिस घर में बेटी
नहीं होती उनसे पूछो की उनका दर्द क्या होता है क्यों की बेटियां तो घर की लक्ष्मी
होती हैं.
बेटी ही हमारा कल थी एवम
बेटी ही हमारा आज है. अगर बेटी नहीं होगी तो न कल रहेगा , न समाज का विकास होगा,
यदि समाज का विकास करना है तो बेटी को बचाना ही होगा इसिलिये कहा जाता है की “
बेटी बचाओ और बेटी पढाओ”
निबंधकार -
बेटे भाग्य से होते है लेकिन बेटियाँ सौभाग्य से होती हैं।